बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शायरी

         
        कहते है इश्क़ के राह पर कांटे बहुत है
          तुम अपने हाथो से कांटे निकलोगे  
    इस उम्मीद में हम हँस कर राह पार कर आये  




         ना माना हमने कि इश्क़ का कोई खुदा है 
     इबादत तो हमने तुम्हारी की, तू ही मेरा खुदा है 




         मौसम के मार से शज़र आज बदल गया 
   पर क्या मौसम है तुममे जिसने तुम्हे बदल दिया 




              बहते झरनों में भी एक प्यास है 
         तुम्हे पाने की मुझे अब भी एक आस है 
              वह तो बहकर भी प्यासा है 
       मुझे तो ठहर कर तुम्हे पाने की आशा है 
   

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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

कहानी

प्रेम की सीख 

रोज की तरह आज भी वह समय पर आया और सारे क्यूबिकल की डस्टिंग करने के बाद बास्केट में पीने के पानी की खाली बोतले रखने लगा. उसके बाद सारा दिन फाइल्स को यहाँ वहां रखना,  सभी को चाय - कॉफ़ी परोसना और साथ ही लोगों का भला- बुरा सुनना यह उसकी दिनचर्या थी. जहाँ हमारी दिनचर्या सुबह १० बजे शुरू होकर छह बजे ख़त्म होती थी वही उसकी दिनचर्या आठ बजे शुरू होकर रात के नौ बजे ख़त्म होती थी.



नाम तो उसका 'तेजप्रताप' था पर प्यार से सब उसे 'बाबू' बुलाते थे। उम्र से लगभग चालीस, दुबला - पतला, बाल अधपके हुऐ, शून्य सी चमकती आँखे, सफारी सूट पहने हुए वह दिन भर बिना थके स्फूर्ति से भरपूर यहाँ वहां भागते मिल जायेगा। जैसा की वह ऑफिस बॉय था, तो यह अंदाजा लगाया जा सकता था की उसकी तनख्वाह भी ज्यादा ना होगी। पर वह काम तो इस तरह करता था जैसे उसे अपने काम से बहुत ज्यादा प्यार हो। कभी- कभी मै यह सोचती थी कि मेरी तन्खवाह इससे ज्यादा होगी, इससे ज्यादा आरामदायक काम है मेरा,  पर फिर भी मैँ अपने काम को मन लगा कर नहीं कर पाती।



बाबू अपने काम के प्रति काफी जिम्मेदार था, लोगों की खुशामद करना, अपनी गलती पर तुरंत माफ़ी मांग लेना जैसे अच्छे सेवक वाले कई गुण मौजूद थे उसमे। मै तो  हाल ही में कंपनी में ज्वाइन हुए थी पर सहकर्मियोँ ने बताया की इसे कई साल हो गए यहाँ ।

 उसके हसते चेहरे के पीछे मुझे एक प्रकार की पीड़ा नजर आती थी। मैंने कई बार अपने सहकर्मियों से बाबू के बारे में ज्यादा जानना चाहा पर सबने यही कहा हमे नहीं पता।

वैसे भी मुंबई के  इस आपाधापी भरे जीवन में जब इंसान को अपने सगे - संबंधियों से हाल चाल पूछने का समय नहीं रहता , तो यह कैसे उम्मीद की जा सकती है की वे एक अददे से चपरासी से उसका हाल चाल जानेंगे। शायद यही इस आधुनिक जीवन की सच्चाई है। दूर के लोगों को जोड़ने के चक्कर में बनाये गए यंत्रो ने करीब के लोगों को ही दूर कर दिया है। जहाँ पहले लोग एक- दूसरे के ड्योढ़ी पर बैठकर अपना सुख- दुःख बाटते थे वहां पर अब फ्लैट रुपी दरवाजे बंद मिलते है।

कुछ दरवाजे तो बाबू के जीवन में भी ध्वस्त दिखाई पड़ते थे। पर वह क्या थे ? क्यों मुझे बाबू के जीवन में कुछ दुःख दिखाई पड़ता था, जो उसके हसते और खुशामद करते चेहरे में कही धूमिल हो जाता था। मैंने कई बार चाहा उससे बाते करू पर बाकी सब इंसानो की तरह व्यस्तता आड़े आ जाती थी। पर मन ही मन सोचा था कि बाबू से बात जरूर करुँगी।

इस तरह कई दिन बीत गए, जैसे प्रकृति अपने निर्धारित समयानुसार काम करती है उसी तरह हम भी समयानुसार काम में जुटे रहते है। बाबू के बारे में कुछ खास जानकारी तो नहीं मिली पर पता चला था की हर महीने में यह ओवरटाइम करके तीन दिन की छुट्टी जरूर लेता था और कभी किसी को नहीं बताता था की यह कहाँ जाता था ?  वैसे भी किसी को इसका उत्तर जानने में कोई रूचि भी नहीं थी।

एक दिन कुछ काम के सिलसिले में ऑफिस जल्दी जाना हुआ, देखा तो बाबू अपने काम में जुटा था।  मुझे देखकर सलामी दी और फिर काम में जुट गया।  कुछ सोचकर  मैंने उसे बुलाया और पूछा, '' बाबू तुम कहा से हो?'' उसने सरलता से जवाब दिया 'जी, मैडम हरियाणा से। ''

'यहाँ कब अाये। ' मैंने पूछा

'मैडम यहाँ तो काम करते - करते पूरी जवानी बीत गयी है। '' मुस्कुराकर उसने मुझे उत्तर दिया

'बाबू मैंने यहाँ कई लोगो से तुम्हारे बारे में पूछा, पर सबने यही कहा कि उन्हें तुम्हारे बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता। ''

'मैडम, यहाँ लोगों को अपने बारे में जानने की फुर्सत नहीं है।  कोई मेरे बारे में क्यों पूछेगा?'' उसके जवाब में एक पीड़ा छुपी हुए थी।

 'यह तो जीवन का दस्तूर बन गया है अब बाबू। वैसे तुम कहा तक पढ़े हो और मुझे अनीता कहो मैडम नहीं।' मैंने उसे हसते हुए कहा ।

'मैडम ……माफ़ कीजिये अनीता जी मैंने गाँव से इंटर तक की पढाई की है, आगे पढ़ना चाहता था पर पैसे नहीं थी सो नहीं पढ़ पाया।'' पानी का बोतल भरते-भरते उसने कहा।

'अच्छा ! तुम्हारी शादी हुई  है?' मैंने पूछा

ये सुनते ही उसने दुःख भरे शब्दों में कहा  , ''हाँ ! मैडम ''

'और बच्चे'

''है मैडम एक लड़का और एक लड़की'' उसने कहा

मन में एक तूफ़ान गूंज रहा था हो ना हो इसके जीवन में कुछ तो तूफ़ान जरूर आया होगा।

''क्या हुआ बाबू ? तुम उदास क्यों हो गए?''

कुछ नहीं मैडम …… अनीता जी बस ऐसे ही'' उसके वाक्य में मुझे रहस्य दिख रहा था।

'क्या हुआ बाबू कुछ तकलीफ है क्या?' मैंने पूछा

'जी नहीं अनीता जी ! जीवन में कुछ ऐसे पड़ाव होते है जहाँ आप खुद को असहाय पाते हो और धीरे - धीरे उन तूफानों  से खुद को निकाल ही लेते है, ऐसा ही कुछ मेरी जिंदगी में भी हुआ है।  जिसने मुझे काफी हद तक तोड़ दिया था पर फिर मैंने खुद ही अपने को जोड़ने का भरसक प्रयास किया है।' यह कहते हुए उसका गला रुँध गया जैसे वह अपने आंसू को पीने को कोशिश कर रहा था। वह अपने आँसू  छुपाते हुए वह से चला गया।

मुझे अपने आप पर काफी गुस्सा आ रहा था की मैंने एक हसते हुए व्यक्ति के घाव को कुरेद दिया था। मैंने सोचा दौड़कर उससे माफ़ी माँग लू, पर तब तक वह तेजी से जा चुका था।  शायद अकेले में रोने के किये, अपने मोमरूपी गम को आँसू के लौ में पिघलाने के लिए।

दफ्तर में अब तक कोई नहीं आया था ।  जिस ताकीदी काम के लिए मै जल्दी आई थी उस काम को मै निपटा रही थी। कंप्यूटर पर उँगिलया चलने के साथ - साथ मन में एक व्यथा, उदासी ने जन्म ले लिया था।

कुछ देर में देखा बाबू पुनः मेरे तरफ आ रहा था पर इस बार वह थोड़ा बुझा था, आँखे लाल थी और अपना दुःख बाटने का संकेत था।

उसे देखते ही मैंने कहा 'बाबू, सुनो मुझे माफ....... ' मेरी बात पूरी होने से पहले ही उसने कहा 'कोई बात नही अनीता जी, कम - स - कम आपने मुझे बात करने की कोशिश तो की।  जब मैंने गौर से सोचा तो मुझे यह लगा की दुःख बाटने से ही काम होता है नाकि उसे हस कर छुपाने से। '

मै जवाब  देने के लिए कोई शब्द ढूंढ ही रही थी तब उसने कहा ' अनीता जी बचपन तो खेत, मोहल्ले और गलियों में गुजर गया, पढ़ने में काफी अच्छा था इसलिए इंटर तक पढाई पूरी की। आगे  पढ़ना चाहता था पर हैसियत नहीं थी। उसी दौरान हमारे गाँव में रहने वाली एक लड़की से मेरा प्यार हो गया था। हम दोनों के घर से इस रिश्ते को नामंजूरी थी, साथ ही गाँव के लोग भी हमारी जान के पीछे पड़े थे।  जैसे तैसे हम दोनों वहां से भाग निकले और यहाँ आ बसे।  धीरे - धीरे हम अपनी पिछली जिंदगी भूल कर आगे बढ़ने लगे, मेरी जॉब थी, हमारे  दो बच्चे हुए हम अपनी जिंदगी में काफी खुश थे।  एक दिन हम बाजार गए बच्चो के लिए मिठाइयाँ लेकर जैसे मुड़े हमने देखा एक बेतहाशा सा ट्रक हमारे ओर आ रहा है..... ' वह फिर शांत हो गया  इस बार उसकी पलके अश्रु के बाढ़ को रोक न सकी।

'.......... और उसने बाज़ार में मौजूद कई लोगों को अपने चपेट में  ले लिया इसमें से एक मेरी बीवी भी थी..... ' वातावरण में फिर एक चुप्पी छा गई।

मैंने  पास में मौजूद पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ाया पर उसने हाथ से उसे एक ओर कर दिया और आगे कहने लगा '…… जब मैंने उसे खून से लथपथ देखा, तो मुझे लगा यह एक जरूर कोई दुःस्वप्न है, पर दुर्भाग्य से यह सच था।  चारो तरफ अफरा-तफरी मची थी, इस बीच मैंने उसे अस्पताल पहुचाया। डॉक्टरों के इलाज से वह बच तो गई पर वह ..... वह अपनी पिछली जिंदगी को भूल चुकी है वह मुझे अपने बच्चो को भूल चुकी है। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए है.…।' यह कहकर वह चुप हो गया।


आज मुझे बाबू के आँखों में रुके हुए आँसू की सच्चाई पता चल गया था। उसने आगे कहना शुरू किया ,'' फिर भी मैंने हिम्मत नहीं  हारी है, मै महीने में तीन दिन की छुट्टी लेकर उन सारी जगहों पर उसे ले जाता हूँ, जहाँ हम उसकी इस हालत के पहले जाया करते थे, उससे फिर उसी तरह बाते करके उसे याद दिलाने की कोशिश करता हूँ ताकि उसे अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ याद आ जाये। …… '' आँखों के कोने से आँसू बह उठे थे और उसे पोछते हुए उसने आगे कहाँ शुरू किया '…… मेरे बच्चो को मै माँ-बाप दोनों का प्यार देता हूँ। उनकी परवरिश में कोई भी कमी नहीं छोड़ता।'

मेरे मन में विचारों के बादल का जमावड़ा हो गया, क्या कोई सच में किसी को इतना प्यार  कर सकता है।यहाँ तो हर दूसरे दिन अखबारों में प्यार को तार - तार करने वाली कई खबरे आती रहती है, पर बाबू ने तो प्यार की परिभाषा को ही बदल दिया है।

मैंने बाबू को पूछा,' क्या तुम उन्हें अब भी प्यार करते हो?'

'क्यों नहीं करूँगा अनीता जी, वह मेरा प्यार है। वो मुझे नहीं पहचानती पर मै तो उसे पहचानता हूँ, उसने अपना सारा जीवन मेरे नाम कर दिया है, अब शायद मेरी बारी है.…… .'  यह कहकर वह मुस्कुराया और वहाँ  से बाहर चला गया।



मै उसे अवाक होकर देखती रही, खुद से कई तरह के सवाल कर रही थी, जब भी मेरा और इनका झगड़ा होता है हम एक दूसरे को तलाक देने की धमकी देते है । शादी के दो  साल के अंदर ही हमने ना जाने कितनी बार एक दूसरे को कोसा है, एक दूसरे को अपने जीवन को बोझ समझा है और यहाँ बाबू जिसकी पत्नी उसे पहचानती तक नहीं उसे वह आत्मीय प्रेम करता है। आज मुझे खुद के क्वालिफाइड होने और मॉडर्न होने पर शर्म आ रही थी, मुझे और हमारे रिश्ते को फिर से जीने के लिए बाबू के प्रेम ने शबनम का काम किया है, उम्मीद है यह शबनम हमारे प्रेम की अटूट ज्वाला बनेगी। आज एक साधारण से व्यक्ति ने मुझे जीवन का सबसे कीमती पाठ पढ़ा दिया था……

 'आज उनसे सबसे पहले माफ़ी माँगूँगी' मन में यह निश्चय करते हुए मुझे लगा

'इस मॉडर्न जमाने में प्रेम को अब भी गंवार रहना चाहिए।' 

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गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

शायरी

 डायरी के पुराने , मुड़े कागज ने जीवन की सच्चाई बयां की
  उनके धोखे, दगाबाजी ने मोहब्बत की सच्चाई बयां की
     मत कहो ये दिल शीशे का होता है, इसलिए टूट जाता है 
असल बात यह है, कि शीशे में देखकर कोई झूठ नहीं कह पाता 
            मेरे यार के घर की ओर से आती हुई हवा ने ये पैगाम दिया है 
 उसने भुलाने की कोशिश तो बहुत की तुम्हे, पर हर एक पैतरा नाकाम हुआ है
       वो ना तो अब उसके रूप पर मरता है 
      वो ना तो अब उसके अदाओं पर मरता है  
       वो तो सिर्फ उसकी चाहत ही है की 
    वह उस बेवफा को अब भी मोहब्बत करता है 
     पर्वत श्रृंखला पर, एक पहाड़ तनहा है 
          बगीचे में एक गुलाब तनहा है 
    जरा झाँक कर देखो दुनिया की सच्चाई 
      इस दुनिया में हर एक इंसान तनहा है
    कुछ तो ताक़त जरूर होगी है याद में तभी तो, 
अनजाने लोग भी दिल पर अमिट छाप छोड़ जाते है 




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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

शायरी



हीरे की तरह चमकाने का वादा करके, 
वह तो जीवन में कोयले  बिखेर गए 

तुम्हारी दी हुए अंगूठी में लगा नगीना फीका हो सकता है, 
पर तुम्हारी याद तो इस अंत: करन में दिए की लौ की तरह जलती है 







ये आसमान से गिरती बिजलिया थोड़ा जोर तो दिखाओ,     
हमारे सनम को डराकर ही सही पर हमारे करीब तो लाओ 


दिल से कोशिश  तो बहुत की तुम्हे भुलाने की 
पर यह  कम्बक्ख्त बूंदे है जो बेवक़्त आकर तुम्हारी याद दे जाती है 

कौन कहता है कि  खुशबू सिर्फ बगीचों से ही आती है 
यहाँ तो वह पल भर भी गुजर  जाए तो भी भीनी खुशबू बिखर जाती है 



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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

Adviceadda.com - वेबसाईट समीक्षा

Adviceadda.com - एक सच्चा सलाहकार 



परिचय:



'सलाह' यह जीवन का एक महत्त्वपूर्ण भाग जिसकी जरुरत हमे हर कदम पर पड़ती है। जैसा की कहा जाता है कि 'यह सलाह ले, एक नि: शुल्क सलाह है' 'मुफ्त सलाह हानिकारक है' अतएव मुफ्त सलाह से बचे क्योंकि ये आपको गलत मार्ग दिखा सकती है। पर जब आपको बिना एक पैसा खर्च किए विशेषज्ञ पैनल से विश्लेषित सलाह  का मौका मिले तब क्या होगा? चकित! है ना ? यहाँ पर Adviceadda.com की भूमिका आती है जहाँ आप लगभग हर सूक्ष्म और स्थूल समस्या पर सलाह प्राप्त कर सकते हैं।

'सलाह बर्फ की तरह है - जितना धीरे यह गिरेगी, उतने अच्छे से यह  आपके मन में डूबकर आपको लपेट लेगी ' यह सुनहरी पंक्तियाँ अंग्रेजी कवि, सचमुच आलोचक और दार्शनिक शमूएल टेलर कॉलरिज  द्वारा बुनी  गई है।

मेरी राय में, सलाह देना इतना आसान नहीं है। आपको निष्पक्ष होने के साथ साथ सही और गलत को ध्यान में रखना पड़ता है। इसलिए कई लोग सलाह देने से बचते है। इस मशीनी युग में जहाँ लोगों को बात करने का भी वक़्त नहीं मिलता, वहां किसी को सलाह देना एक अधूरा सपना सा लगता है।




 आपको  Adviceadda.com की जरूरत क्यों है?

मनुष्य पृथ्वी पर जटिल प्रजातियों में से एक हैं। उनकी भावनाये स्थितियों, और व्यवहार अप्रत्याशित हैं। वे एक पल के लिए खुश हो सकते हैं और अगले ही पल पर वे उदास हो सकता है। बस हमारे व्यवहार की तरह   हमारा जीवन भी अप्रत्याशित है। कई बार जीवन में हमे कई जटिल चीजों को सामना करना पड़ता है, जहाँ हमे लगता है कि आगे कोई भी  विकल्प नहीं है, जहां आपको लगता या हम कहीं फंस रहे हैं  और इसके खत्म होने की  कोई संभावना नहीं है। इस आभासी दुनिया में, हम मुट्ठी भर लोगों पर ही भरोसा कर सकते है, तो उनसे अपनी भावनाएं व्यक्त करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। 


आपकी समस्या चाहे छोटी हो लेकिन आप घुटन और असहाय महसूस कर रहे हैं, यहां तक ​​कि अपनी स्थिति के बारे में  मुट्ठी दोस्तों के साथ भी चर्चा नहीं कर सकते हैं। तो उस वक़्त की देर नहीं है जब समस्या का यह  छोटा सा  बीज अवसाद की एक घातक स्थिति बन जायेगा। मुझे नहीं लगता अवसाद को विस्तृत करने की  कोई जरुरत है, हम सभी कभी ना कभी इस समस्या से गुजर चुके है।

मानवीय भावनाओं की  इन अनकही समस्याओं को हल करना ही   Adviceadda.com की विचारधारा है। इस अद्भुत पोर्टल के संस्थापक, प्रख्यात पत्रकार विवेक सत्या मित्राम एक बेहतर समाज बनाने में विश्वास करते हैं। यह  वेबसाइट उनकी कुशल सोच का नतीजा है जहाँ आप किसी भी समस्या का अचूक और बेहतर उपाय पा सकते है।  जिससे आप अपने खुद के विचार, जीवन, और समस्याओं का गुलाम नहीं बन पायेंगे ।

Adviceadda.com की मुख्य विशेषताएं:

1) जहाँ सलाह, वहाँ हम: 

'अड्डा' एक हिंदी शब्द है जो एक स्थान को सम्बोधित करता है, जहाँ लोगों का एक समूह एक दूसरे के बीच अपना ज्ञान और सलाह का आदान प्रदान करते है । यहाँ भी आपको उसी तरह के लोग मिल  जायेगे , लेकिन फर्क यह है कि वे  अपने क्षेत्र में कुशल है और कुछ ही समय में आपकी समस्या का समाधान कर देंगे । यहाँ पर आपको शिक्षा, कैरियर, रिश्ते, पुरुषों के स्वास्थ्य, महिलाओं के स्वास्थ्य, सेक्स , मानसिक, कानूनी मुद्दा, पैसा, परवरिश, संपत्ति, सौंदर्य, उपकरण, स्वास्थ्य, जीवन कौशल, उद्यमिता, जीवन शैली, ऑटोमोबाइल, समाज जैसे कई मुद्दो पर सौ फीसदी अचूक सलाह मिलेगी। 

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मेरा निर्णय: 

            ईमानदारी से कहूँ तो मेरे जीवन में भी कई बार ऐसी घटना हुई है  जहाँ मैंने अपने अपने आप को असहाय  पाया।  ऐसा लगा  अब  कोई उपाय नहीं है। दोस्तों को भी बताया, उन्होंने मदद की पर आखिर कितनी बार उनको अपनी समस्या बताती वह भी इंसान है, तब से मैंने मन की बात मन में रखने की ठान ली है।

मुझे इस वेबसाइट के बारे में इस स्पर्धा के दौरान ही पता चला है, आगे मुझे किसी भी सलाह की जरुरत पड़ी तो मै बेझिझक यहाँ पूछ लूँगी। यह सिर्फ वेबसाइट नहीं बल्कि ऐसे लोगो द्वारा संचालित संस्था है जो लोगो को बेहतर जिंदगी देने में विश्वास रखते है. मुझे लगता है हमे अपने दोस्तों और परिवार के लोगों को भी इस वेबसाइट के बारे में बताना चाहिए ताकि वे किसी समस्या से घिरे ना रहे और सही समय पर उलझनों के दलदल से बाहर निकल जाये  ।

Adviceadda.com को मेरी रेटिंग : ५/५ 


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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

नब्बे का दशक - एक झलक

 नब्बे का दशक 


नब्बे के दशक की बात ही कुछ और थी,
डी डी -१ ही एक सहारा था,
रंगोली, सुरभि जैसे कार्यक्रमों का बोलबाला था,

ब्लैक एंड वाइट टीवी थी 
जो अक्सर खराब रहती थी 
सीरियल के बीच में जाकर 
एंटीना ठीक करते थे



किसी एक नामचीन के घर टीवी होती थी 
शुक्रवार की फिल्मों का इंतज़ार रहता था 
गली के  बच्चे बूढ़े जुटते थे 
महाभारत और रामायण देखने के लिए 

जब कार्यक्रम के बीच न्यूज़ आता 
तो गुस्सा आता था
आहट, ज़ी हॉरर शो के लिए हम तरसते थे 
और घडी की सुइयां देखते रहते थे 

मटके की कुल्फी तो बहुत महंगी लगती थी
एक रुपया भी मुश्किल से मिलता था 
पर फिर भी बहुत कुछ आ जाता था 
पान वाला चॉकलेट, झट से घुलने वाली नल्ली :) 

लुका छिपी  कैरम, सांप - सीढ़ी और गुट्टी 
पकड़म  पकड़ाई तो पसंदीदा खेल था 
स्कूल से आते ही जिसमे जुट जाते थे 
चीटिंग तो खूब होती, पर मजा भी उतना आता था 



ना मोबाइल, ना कंप्यूटर था 
पेजर का ज़माना था
रीमिक्स इंडी- पॉप गानों का समय था 
भारत के बदलने का समय था

स्कूल ख़त्म होते ही 
वह दशक खत्म हो गया 
शायद हम भाग्यवाले  थे जो यह 
खूबसूरत समय जी सके 

आज कल तो ना गली में शोर 
ना लुका -छिपी, ना बच्चे है 
शायद वह कंप्यूटर, मोबाइल में बिजी है 
अब के बच्चे वह बच्चे ना रहे 
वह तो समय से पहले ही बड़े हो गए है 

निजीकरण ने दुनिया तो बदल दी '
साथ ही वह स्वर्णिम क्षण भी 
जिसमे हमने अपना बचपन बिताया 
वह वक़्त कभी लौटेगा नहीं 

इसलिए तो कहती हूँ 
नब्बे के दशक की बात ही कुछ और थी........... 







मंगलवार, 22 सितंबर 2015

कहानी

अविस्मरणिय यात्रा - भाग २ 

रात के हवा के झोंको की बात ही कुछ और होती है, आगाज़ में एक शीतलता और ख़ामोशी होती है। इसलिए तो लेखक और कवि रात के शांत वातावरण में अपने विचारों को गूँथने की कोशिश करते है। इस समय की नींद भी सबसे ज्यादा सुखद होती है, और इसी सुखद नींद को मै आज आत्मसात कर रही थी।  पर यह नींद इतनी भी गहरी ना थी , और एक आवाज से मेरी आँख खुल गई।  लगा कोई स्टेशन आ रहा है, या फिर कोई ट्रैन में चढ़ रहा है। 
मेरे विचार के विपरीत ट्रैन तो तेज गति से चले जा रही थी। घडी में सुबह के तीन बज रहे थे, इस समय अचानक आँख खुलने से थोड़ी झुलझुलाहट हो रही थी।  तभी सामने वाली बर्थ पर देखा तो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बैठा था। यह व्यक्ति तो पहले यहाँ नहीं था, अचानक कहाँ से आ गया ? प्रमुख स्टेशन के बाद अगला स्टेशन करीब सुबह ६  बजे आता है ।  मैं विचारो के इन सब उधेड़बुन में थी कि वह व्यक्ति मुझे देखकर मुस्कुराया, मैं प्रत्युत्तर में उसे देखकर मुस्कुरा दी।  पर भीतर से मुझे तो कई विचार खाए जा रहे थे। 
इतने में उस व्यक्ति ने कहा, 'तुम नैनी जा रही हो ना ?' मैंने थोड़ा चकित होते हुए हामी भर दी। मेरे चेहरे के भाव को पढ़ते हुए उसने कहा  'फ़िक्र मत करो वह तुम्हारे कार्यक्रम का एक प्रॉस्पेक्टस गिरा हुआ था, मैंने उसमे देखा।'
 उस व्यक्ति ने कहा, 'क्या तुम सच में भूत- प्रेत और अलौकिक शक्तियों पर विश्वास नहीं करती?  
समय न गवाते हुए मैंने सीधा जवाब दे दिया 'हाँ,यह सब बकवास है, मै तो बिलकुल भी उनपर विश्वास नहीं करती और शायद इसी वजह से मै इस कार्यक्रम से जुडी हुई हूँ। ' 
'क्या तुमने कभी भूत प्रेत देखे है, या फिर इन  शक्तियों को महसूस किया है?' 

'नहीं ! ' मैंने कहा ''दरअसल यह सब बातें लोगों की दिमाग की उपज है और कुछ नहीं, उन्हें यह सब अपने सब - कॉनसियस माइंड से महसूस होता है।  इन सब शक्तियों का वैसे भी अब तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।'' 
वह व्यक्ति मेरी बातों को ध्यान  से सुन रहा था।  उसके बाद उसने कहा, '' तुम अपनी जगह सही हो, पर कई लोगों ने  पूरे  होशोहवास में ऐसी आकृितिया देखी है जिसका इस जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। '' मुझे उस अनजान से व्यक्ति से बात करना ठीक नहीं लग रहा था, पर मुझे लगा इस व्यक्ति से बात करके शायद मुझे रिसर्च में कुछ और मदद मिल जाये और साथ ही समय भी कट जायेगा।  नींद तो मेरी आँखों से कोसो दूर थी।  
''हाँ, हो सकता है पर जब तक वैज्ञानिक सबूत नहीं है, ऐसी बातों पर मेरा यकीन करना मुश्किल है।''  
उसने एक फीकी मुस्कान दी और पूछा ,'' क्या तुम ईश्वर पर विश्वास करती हो?'' मैंने कहा ''हाँ , पर मै ईश्वर को एक सकारात्मक ऊर्जा के रूप में मानती हूँ जो इस दुनिया को चला रहे है।'' 
उसने कहा, '' बिलकुल सही, तुम यह तो मानती हो ना इंसान का शरीर भी ऊर्जा का एक का एक स्वरुप है? जिसे 'आत्मा '' कहा जाता है "  
''हाँ '' मैंने कहा। उसने आगे कहा ''जब एक इंसान मरता है तो वह अपना शरीर छोड़ता है, पर उसकी आत्मा तो इसी ब्रह्माण्ड में रहती है। जो आगे किसी और रूप को धारण कर लेती है। '' 
मैंने इन सब तथ्यों को अपने दादाजी के मुंह से सुना था, पर मैंने हमेशा ही इस बात को नकारा था। मैंने फिर वही शब्द कहा कि ,''क्या इसका कोई सबूत है, नहीं ना तो इन सब बातों को क्यों सच समझना चाहिए?'' 
उसने कहा ,'' तुम सही हो पर तुम्हे पता है कुछ बातों को साबित नहीं किया जा सकता है। कुछ ऊर्जा या आत्मा अपने इस अनदेखे प्रवास के दौरान पृथ्वी पर ही बंद हो जाती है। जिसे भूत- प्रेत कहा जाता है।'' 
मैंने ऐसे रोचक तथ्य कभी नहीं सुने थे, ''क्या ऐसा भी होता है? मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है।'' 
''और ऐसा भी  कहा जाता है कि जो आत्माये इस धरा पर ठहर जाती है, उनका कुछ उद्देश्य होता है जो वह अपने जीवन में  नहीं पूर्ण कर पाये होते है। ऐसी आत्मये अतृप्त होती है जो यहाँ वह भटकती रहती है और मोक्ष पाने का इन्तजार करती रहती है'' 
''तो फिर जो लोग इन आत्माओं के चपेट में आने से जान दे देते है, वह क्या है ? '' मैंने पूछा। 
''कोई भी आत्मा इतनी सक्षम नहीं होती की वे इंसान की जान ले पाएं।यह काम उनसे करवाया जाता है ताकि बिना किसी सबूत के वे अपने दुश्मन का काम तमाम कर दे।'' 
आज तक मैंने ऐसी बाते कभी नहीं सुनी थी। मैंने दौड़ती ट्रैन के बाहर देखा तो सूरज उदय होने की तैयारी में था। मैंने फिर उस व्यक्ति की ओर देखा और पूछा ,'' क्या आपने कभी ऐसा कुछ देखा है? जो आपने इतने विश्वास के साथ इन सब बातों को मुझे बताया।'' 
वह व्यक्ति थोड़ी देर तक खामोश रहा और कहा ,'' क्या तुम अब भी अलौकिक शक्तियों पर यकीं नहीं कर पाई हो?'' 
मुझे यह प्रश्न कुछ अटपटा सा लगा और बिना मेरे कुछ उत्तर देने से पहले ही वह व्यक्ति मेरी आँखों के आगे से ओझल हो गया, जैसे कोई सफ़ेद धुँआ छट गया हो। मुझे तो अपनी आँखों  पर विश्वास ही नहीं हुआ, आँखों को मसल कर फिर सामने वाली सीट पर देखा तो वह कोई नहीं था। ट्रैन की रफ़्तार तो एक जैसी थी। मै तुरंत उठकर यहाँ - वहाँ देखने लगी पर मुझे तो उस व्यक्ति का नामोनिशां ही नहीं मिला। सामने सूरज पूरी तरह से भोर हो चुका था, घडी ५.३० के समय दिखा रही थी। 
पसीने से तर- बतर मुझे याद आया की कुछ देर में मेरा स्टेशन आने वाला है। इतने में सामने वाली सीट का वह लड़का मुझे असमंजस में देख कर बोला ,'' मैडम आप रात में अकेले किस से बात कर रही थी? मै बाथरूम जाने के लिए उठा था, तो आपको देखा, पर उस समय आपको टोकने की हिम्मत नहीं थी।'' हिम्मत तो मेरी भी नहीं थी कि उसे बताऊ रात में मै जिस व्यक्ति से  बात कर रही थी वह कौन था? 
इतने में मेरा स्टेशन आ गया, और सामने मेरे टीम मेंबर मुझे लेने के लिए खड़े थे। मैंने जैसे तैसे खुद को संभाला और ट्रैन से उतरी। टीम मेंबर्स ने मेरा फीके चेहरे का कारण पूछा पर मैंने कुछ भी जवाब नहीं दिया। गाड़ी में वे सब यही बात कर रहे थे  कि भूत - प्रेत कुछ नहीं होता बस मन का वहम है। जब उन्होंने मेरा विचार जानना चाहा तो मैंने चुप्पी साध ली । आखिर उनको कैसे बताती की इस ट्रैन की इस यात्रा ने मेरे विश्वास और जीवन को एक दूसरा आयाम दे दिया है, जो चाह कर भी अगर किसी को बताऊ तो वह यकीं नहीं करेगा ……। 

सोमवार, 21 सितंबर 2015

आरक्षण देना बंद करो ....!!!

आरक्षण - देश का भक्षण 



आओ तुम भी आरक्षण ले लो, 
धीरे धीरे देश का भक्षण कर लो 
पहले तुम अपनी जात बताओ, 
फिर तुम अपना धर्म बताओ 

अच्छा ! चलो अब कितना, 
आरक्षण कब और कहाँ चाहिए 
क्या कहा ? फिर से कहना 
 'शिक्षा और सरकारी नौकरी में' 



अच्छा चलो अपनी योग्यता दिखाओ 
अच्छा! जरुरत नहीं योग्यता की 
'तुम 'जन्मजात योग्य' हो'
तो फिर बढ़िया है 

अच्छा तुम गरीब हो
'नहीं तो मै सबसे सम्पन हूँ' 
इसलिए तो आरक्षण के योग्य हूँ 
हमे भी हिस्सा चाहिए'

किसका हिस्सा? योग्य विद्याथियों का ?
जरुरतमन्दो का? 
'नहीं हमें  भी आरक्षण चाहिए' 
ठीक है आरक्षण मिलेगा, 
पर एक शर्त है, उतने ही लोग 
सेना में भर्ती होने चाहिए,
'सेना में क्यों, हम अपना हक़ मांग रहे है' 
तुम्हे हक़ मिलेंगे पर जिम्मेदारी और त्याग के साथ 
जब ऐसी शर्त है तो मुझे 
आरक्षण नहीं चाहिए, 

क्यों तुम मुकर गए हो अब 
दुम दबाकर भाग गए हो अब 
आरक्षण उनके लिए है 
जो असहाय है, जो गरीब है जो योग्य है  
नाकि एक जात में पैदा हो इसलिए 

तुम्हे परमात्मा में हाथ - पैर दिए है 
तुम्हे बुद्धि दी है, क्यों ना 
वह बुद्धि तुम देश की सेवा 
में लगाओ नाकि 
देश में अराजकता फैलाओ 

श्रीमान हार्दिक, कुछ पाने के 
लिए मेहनत करनी पड़ती है 
नाकि तुम्हारे तरह आरक्षण की भीख मांगी जाती है 
तुम तो अभी अंडे से निकले चूजे हो 

जिसने अभी, एक इंच भी दुनिया नहीं देखी 
क्या तुम अपनी इस हीन कार्य से 
कुछ हासिल करोगोे
नहीं कुछ नहीं सिर्फ देश की बर्बादी के सिवा 

अगर तुम आरक्षण ख़त्म करने के 
खिलाफ खड़े होते तो 
शायद तुम क़ाबिले - तारीफ़ होते 
पर तुम तो खुद में काफी उलझे हो 

वैसे भी आरक्षण के नाम पर 
तुम देश का भक्षण कर रहे हो 
भारत  माता के दामन को कुचल रहे हो 
तुम जारी रखो अपनी पिछड़ी सोच को 

शायद कुछ दिन में तुम 
फिर से पाषाण  युग का जीवन जियोगे















कहानी

अविस्मरणिय यात्रा - भाग १ 


घडी की ओर देखा तो वह शाम के ७ बजे का समय दिखा रही थी । ट्रैन पकड़ने में अभी दो घंटे का समय और था। एक  सूटकेस में तो कपडे वगैरा रख दिए थे। सोचा दूसरा छोटा बैग में हैंड टॉवल और कुछ कहानी की किताबे और लैपटॉप रख लू  ताकि समय आसानी से कट जायेगा।  जल्दी- जल्दी दूसरे बैग में रोजमर्रा के छोटे- मोटे सामान रखने लगी। इतने में फ़ोन आया  'हेलो, क्या तुमने निकलने की तैयारी कर ली है? समय पर निकलना। हम सब भी यहाँ  जोर शोर से तैयारी में जुटे हुए है, तुम आ जाओगी तो सब फाइनल हो जायेगा।' मैंने हाँ में जवाब देते हुए फ़ोन रख दिया। यह फ़ोन हमारे प्रोजेक्ट हेड का था,  जो इस वक़्त उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े गाँव में कल के प्रोग्राम की  तैयारी में जुटे थे। वैसे तो पेशे से मै एक पत्रकार हू, पर साथ ही अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के साथ भी नियमित रूप से जुडी हूँ। 

जिस पिछड़े गाँव में हमारे टीम के सदस्य  कार्यक्रम की तैयारी कर रहे है उस गाँव में पिछले एक साल में करीबन भूत- प्रेत की बाधा के कारण कई लोग अपनी जान गवा चुके है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश की होने के कारण इन बातों का काफी समय से अध्ययन किया था। उसके बाद अपने प्रोजेक्ट हेड को अगले अंधश्रद्धा निर्मूलन कार्यक्रम के लिए इस गाँव का सुझाव मैंने ही दिया था। वैसे तो मुझे ही वह सबसे पहले वहां पहुँचना था। पर एक अति आवश्यक न्यूज़ के आ जाने के वजह से मैंने शाम की ट्रैन से जाने का निश्चय किया। 



स्टेशन पहुंची तो, ट्रैन आने में अभी पंद्रह मिनट का समय था। स्टेशन पर ट्रैन के लिए काफी ख़ास भीड़ नहीं थी, वैसे यह छुट्टियों का समय नहीं था। ट्रैन समय पर आई, मैंने अंदर जाकर अपना सामान  गंतव्य स्थान पर रखा। काफी सारी सींटे खाली थी, सिर्फ बगल वाले टू सीट पर एक लड़का था। स्थान ग्रहण करते ही ट्रैन निकल पड़ी। फ़ोन करके अपने प्रोजेक्ट हेड को इंतला कर दिया और खिड़की के बाहर नजर घुमाई। रात के इस अँधेरे में यह जीवन जैसे अपना गति खो बैठता है। सिर्फ इस ट्रैन के सिवा कोई और ज्यादा हलचल नही हो रही थी। 

पानी की बोतल से एक घूंट पानी पी के , एक सैंडविच खाया। देखा तो अभी सिर्फ दस बज रहे थे। सोचा क्यों ना अपने रीसर्च और सारे एजेंडा को एक आखिरी स्वरुप दे दू। लैपटॉप पर काम करते करते १२ बज गए पर फिर भी नींद थी की आँखों में आ ही नहीं रही थी। अंत में लैपटॉप बंद करके खिड़की से ठंडी हवा का लुफ्त लेने लगी। साथ ही मै सोचने लगी की क्या सच में भूत प्रेत होते है, अगर है तो मैंने तो कभी नहीं देखे फिर अगर है तो वह लोगो की सोच में है या सच में है। मेरे रीसर्च में तो मैंने यही पाया है की यह सब एक मनोवैज्ञानिक दशा है। पर लोग जो वह दूसरे आवाज में बात करते है, छाया दिखने की बात करते है वह सच है क्या? ऐसे ना जाने कैसे कैसे सवाल मेरे मन में आ रहे थे। पर अंत में मैंने अपने आप को समझाया ये सब कुछ नही होता है और कल मुझे अपने एजेंडा पर दिल लगा के काम करना है। यह सोचते- सोचते ही मैं नींद के आगोश में आ गई। 


शनिवार, 19 सितंबर 2015

नानी के गाँव की यादों का विवरण

नानी का गाँव 


चलो कुछ दिन गाँव में बिताये 
कुछ दिन पीपल की छाँव में बिताये,
व्यस्त जिंदगी से दो पल मिठास में बिताये 

वह नानी का घर, वह मीठी धूप 
वह जामुन का पेड़, वह मिटटी के खिलौने 
वह मस्ती का अड्डा, वह घास का बिछौना 
जो था हुड़दंगो का ठिकाना 



सुबह होते उठ जाना
दौड़ कर अमिया को तोड़ लाना 
पेड़ भी पक्का दोस्त था अपना 
देखकर डाली झुका देता 

बोरवेल चलने का इंतज़ार करना 
दौड़ कर पहले तगाडे में घुस जाना
नहरो के किनारे अपना घर बनाते 
जो पल भर में लहरो मे समां जाता 

नानी के हाथ का वह लज़ीज़ खाना,
जो ताजा गन्ने का रस,
गुड  में  चासनी में डूबे हुए गुलगुले 
कच्चे आम का खट्टा अचार 

दिन भर  धमाचौकड़ी करना 
सूरज ढलते ही सो जाना 
सुबह खुद को, मच्छरदानी और 
गुदड़ी से  लैश पाना 

सच यह दिन भी कितने सुहाने थे, 
लड़कपन से अनजान अपनेआप के दीवाने थे 
वह गाँव का गुट कब बड़े होने के साथ 
अलग हुआ पता ही ना चला 

आज इस व्यस्त जिंदगी के 
दो पल उधार ले के 
पुरानी जिंदगी को जीने की कोशिश की 
वह पेड़, नहर अब भी है वहां 
पर जो नहीं है वह हम, हमारा बचपन और हुड़दंग 

शहर की कंक्रीट इमारतों से ज्यादा 
ये प्रकृति हमारे मित्र है 
गाँव की आबोहवा  
जैसे कोई मनमोहक इत्र है 

सुबह होते ही फिर उसी 
निर्दयी जीवन में चलना है 
तब तक जरा इस अमूल्य 
क्षण को निहार लू………








शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

शांती ही, विश्व का अस्तित्व बचा सकता है ....


तबाही 


भारत की यह भूमि
क्यों लहू से सन गई है, आज
एक दूसरे के खून का प्यासा
क्यों हो गया है इंसान आज

बम ब्लास्ट, ए - के - 47
बन गए है, शांति के नए औजार 
धर्म - जात के नाम पर ठगते है 
नाम खुदा का बदनाम करते है



शर्म आती है, जब मै यह सोचती हूँ 
यही वह धरती है, जहाँ पर जन्म लेकर 
मातृभूमि से गद्दारी करते है यह 
दुश्मनो की फ़ौज में जाकर 
खुद के घर में सेंध लगाते है यह 

क्या यह नहीं सोचते,
बंदूक से निकली गोली 
जात - धर्म नहीं पूछती 
नहीं पूछती वह तुम गुनहगार हो या नहीं

क्या अल्लाह ने , ईश्वर ने 
मांगी है यह क़ुरबानी 
या फिर अपना उल्लू सीधा करने को 
लेतो हो तुम जान हमारी 

बच्चो, युवाओं को भड़काते हो 
जन्नत की हूरो का ख्वाब दिखाकर 
इंसानियत का क़त्ल करके 
धरा को जीते जी नर्क बनाते हो 

क्या जान ले ले से 
खुदा खुश  होता है ? 
क्या बंदिशे लगाने से 
खुदा का दीदार होता है ? 

अगर ऐसा होता हो , तो 
मुझे प्रत्यक्ष दिखलाओ , 
साबित करो कि , गीता, कुरान, बाइबिल 
धर्म ग्रन्थ नहीं, साजिश रचने की पुस्तके है 

अभी भी समय है, 
रोक दो, ये तबाही 
मत अलग करो 
तुम अपने इलाही 

नहीं तो देर नहीं है 
जब फिर से पाषाण युग 
का जीवन जियोगे 
अपनी गलती पर पछताओगे 
अपनी गलती पर पछताओगे................ 











सोमवार, 27 जुलाई 2015

वह य़ाद जो, सिर्फ य़ादों मे बस जाए ...


अनकही याद 


क्या थी वह तमन्ना तुम्हे पाने की,
जीवन की सारी खुशियां तुमपर लुटाने की 
एक पल भी आपका दीदार हो जाये तो, 
लगता था कि खुदा  से रूबरू हो गए है हम 

आपकी एक झलक भी काफी कीमती हुआ करती थी 
जब भी आँखों से ओझल होते तो 
लगता था, दिल का चिराग ही बुझ गया है 
उड़ते हुए धूल में, आपकी छवि को ढूंढ़ते थे 



आपकी आखिरी सूरत को, दिल में संजो कर  रखते थे
उसे रोज याद करते थे, डर था 
 कि कही वह सूरत बदल ना जाये 
डर था कि कही आप हमे भुला ना  जाये 

जब भी सालों बाद आपको देखते तो 
बरखा की बूंदों की तरह 
आँखे झरझरा उठती थी 
फिर भी उसे पोंछ लेते ताकि आपको जी भर देख सके 

ना कह पाते, कुछ 
 अधरों तक बाते आकर रुक जाती थी 
 मुस्कुरा उठते थे बस 
इतनी सी ही बात हो पाती थी 

जी करता है, कभी- कभी 
ईश्वर से वह पल उधार मांग ले 
जी करता है आपको 
भगवान से  मांग ले 

रोकना चाहे आंसू पर आज थम ना सके 
आपको ढूँढना चाहा पर आप मिल ना सके 
आज शायद आपकी याद 
वर्तमान पर भारी पड़ गई 

आपकी याद रोक पाते 
दिल को समझाते इतनी हिम्मत ना हो सकी.... 











गुरुवार, 16 जुलाई 2015

उत्तर भारतीय मजाक नही .....

गर्व है मै 'भैया' हूँ 



'भैया' जिसका एक अर्थ होता है, 'भ्राता' 'भाई' या अंग्रेजी में कहे तो 'Brother'. पर समय के अनुसार भाषा लिपि में परिवर्तन होता रहता है. तो आज कल 'भैया' शब्द का उपयोग उत्तर भारतीय लोगो का मजाक उड़ाने में किया जाता है.  या फिर कोई अगर कोई काम ढंग से ना करे तो उसे 'भैया' कह दिया जाता है.

चार दिन पहले दफ्तर में एक कर्मचारी, जो की नयी परिभाषा के आधार पर जात से 'भैया' था उसने कोई कागज़ पढ़ी लिखी नॉन - भैया के हाथ में थमाया जो की थोड़ा मुड़ गया था. उसके जाते ही उस नॉन भैया ने तपाक से बोला  ''कागज की  हालत तो देखो, भैया है ना.'' उसे लगा मैंने सुना नही है........ यह कोई पहला वाकया नही है जहाँ मैंने सुना हो, 'भैया' है ना.

यह लेख मैं उन सभी नॉन- 'भैया' को समर्पित करती हूँ जो यह सोचते है, कि 'भैया' लोग एकदम 'भैया'  होते है.



कई लोगो को यह  तकलीफ है, कि 'भैया' लोग हर जगह पहुंचे रहते है तो उनको मै यह बता दूँ भारत के संविधान में हर किसी को भारत के हर राज्य में जाकर अपनी रोजी- रोटी कमाने का हक़ है. 'भैया' लोग काम से नहीं डरते है. क्या आप  जानते है कि अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए वह अपने घर से  दूर  आते है. मेहनत करते है, पानी पूरी का ठेला लगाते है, सब्जी बेचते है, वॉचमन का काम करते है. टैक्सी चलाते है.

 अब आप यह सोचेंगे इसमें कौनसी  बात है, कौन सा ये लोग टाटा - बिरला बन गए है. नहीं हर कोई टाटा - बिरला  नहीं बन सकता।  कम से कम 'भैया' लोग  मेहनत की तो खाते है.

क्या आपको पता है?  घर - घर पढ़ी जाने वाला रामचरित मानस 'अवधी' भाषा में लिखा गया है. जो की 'भैया' लोगो की भाषा है. राम - कृष्णा का जन्म उत्तर भारत की पवित्र भूमि पर हुआ था.

क्या आपको पता है? हिंदी (जो हमारी राष्ट्रभाषा है)  के सबसे ज्यादा लेखक प्रेमचन्द्र, हरिवंशराय बच्चन, राजेंद्र यादव  उत्तर प्रदेश के है.

अमिताभ बच्चन, सदी के महा नायक  उत्तरप्रदेश के है. भारत की पवित्र गंगा, पहला अजूबा ताजमहल उत्तरप्रदेश में है.  गेहूं का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तरप्रदेश  में होता है.

हमारी भाषा मजाक उड़ाने के लिए नहीं है........... हिंदी के कई शब्द अवधी से लिए गए है.

अतः जो भी यह पढ़ रहे है, उनसे मै एक निवेदन चाहूंगी कि,  'भैया'  शब्द का उपयोग सिर्फ भाई - बहन के रिश्ते के लिए छोड़ दे.  'भैया' लोग भोजपुरी भाषा  बोलते है नाकि 'भैया' भाषा।





क्या होता है, जब पुराने कागज मिल जाते है......


मुलाकात


आज कुछ मुलाकात हो गयी 
पुराने कागजात में 
चंद मुस्काने मिल गयी 
पुराने कागजात मे

वह अखबार का  पन्ना
जो काफी सहेज कर रखा था
आज पंद्रह साल बाद भी
वह  छपी कविता दिल को छू गई



वह डायरी का पन्ना जो
अब पीला पड़ चुका है
उसपर लिखी बातें
हौले से सहला गई

वह कुछ सर्टिफिकेट
जो जीते थे स्पर्धा में
आज सामने आते ही
वह तालियों की गड़गड़ाहट कानों में गूंज गई

वह गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ
अभी भी खुश्बू समेटे है
शायद कुछ यादों की
कुछ वापस ना आने वाली जज्बातों की

कुछेक पन्नो पर, बहती नदी,
घर, पहाड़ के चित्र थे
रंग फीके पड़  गए थे
पर वह फिर भी इस बेरंग दुनिया से अच्छे थे

अच्छा हुआ इन पीले पड़े कागजो से
मुलाकात हो गई
कम- स -कम दो क्षण ही सही
होंठो की मुस्कराहट से मुलाकात हो गई








शुक्रवार, 12 जून 2015

समुंदर, अशांत मन की दवा ………


समुंदर


समुंदर, तुझे देखती हूँ 
तो बहुत प्यार आता है
आखिर दिल की अनकही बाते 
तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ 

तू ही तो एक है जो 
मझे सुनता है, मुझे समझता है 
मुझे बताता है, साथ निभाता है 
दर्द-ए -दिल की दवा है तू 

अपने लहरो को,  मेरे पैरो से छूकर 
मुझे शांत कराता है. 
मोती जैसी बूंदो को उड़ाकर 
जागृत करता है 




अथाह फैला है तू पर फिर भी 
कितना शांत है, 
कितना भोला है 
कितनो को पनाह दी है 

तेरी मदमस्त लहरों को 
देख कर दिल का तूफान शांत हो जाता है
इक तू ही तो है, जिसके साथ 
मै खुद को ढूंढ पाती हूँ 

इक तेरे आगोश में ही 
खुद को महफूज पाती हू 
क्यों है इतनी दिल्लगी तुमसे 
मै समझ नही पाती हू 

इस जीवित समाज को छोड़ कर 
खुद को ढूंढने, रोने तेरे पास आती हू 
तेरे रेतीले वस्त्र को 
अश्रु  से भीगा जाती हू 

तू मेरे रोने का कंधा है, 
इस जीवित समाज से तो 
तू लाख गुना अच्छा है 
जो सिर्फ रुलाना जानती है 
क्यूँ वो तुझसे कुछ नहीं सीखता 

मुझपर लुटाई तेरी हर  'बूँद' 
मुझे दिया गया तेरा हर समय 
मुझपर एक एहसान है
एक सच्चे दोस्त की पहचान है

आखिर दिल की अनकही बाते 
                     तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ.……………