शुक्रवार, 12 जून 2015

समुंदर, अशांत मन की दवा ………


समुंदर


समुंदर, तुझे देखती हूँ 
तो बहुत प्यार आता है
आखिर दिल की अनकही बाते 
तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ 

तू ही तो एक है जो 
मझे सुनता है, मुझे समझता है 
मुझे बताता है, साथ निभाता है 
दर्द-ए -दिल की दवा है तू 

अपने लहरो को,  मेरे पैरो से छूकर 
मुझे शांत कराता है. 
मोती जैसी बूंदो को उड़ाकर 
जागृत करता है 




अथाह फैला है तू पर फिर भी 
कितना शांत है, 
कितना भोला है 
कितनो को पनाह दी है 

तेरी मदमस्त लहरों को 
देख कर दिल का तूफान शांत हो जाता है
इक तू ही तो है, जिसके साथ 
मै खुद को ढूंढ पाती हूँ 

इक तेरे आगोश में ही 
खुद को महफूज पाती हू 
क्यों है इतनी दिल्लगी तुमसे 
मै समझ नही पाती हू 

इस जीवित समाज को छोड़ कर 
खुद को ढूंढने, रोने तेरे पास आती हू 
तेरे रेतीले वस्त्र को 
अश्रु  से भीगा जाती हू 

तू मेरे रोने का कंधा है, 
इस जीवित समाज से तो 
तू लाख गुना अच्छा है 
जो सिर्फ रुलाना जानती है 
क्यूँ वो तुझसे कुछ नहीं सीखता 

मुझपर लुटाई तेरी हर  'बूँद' 
मुझे दिया गया तेरा हर समय 
मुझपर एक एहसान है
एक सच्चे दोस्त की पहचान है

आखिर दिल की अनकही बाते 
                     तुझसे ही तो साझा कर पाती हूँ.…………… 













स्कूल की यादों को उकेरती कविता

जून का वो महीना


बहुत याद आता  है 
जून का वो महीना
स्कूल की यादो को उकेरता है 
जून का महीना 
वह स्कूल, वह जगह 
वह बेंच, वह दोस्त 

'एक क्लास और आगे बढ़ गए'
लगता था जैसे बहुत बड़े हो गए 
पहले दिन जल्दी जाना 
सबसे अच्छी बेंच पकड़ना
बहुत याद आता  है 
जून का वो महीना



नई किताबे, नई  पेन 
नई चप्पले, नया बैग 
कितना आनंद छुपा था 
उस बुक शॉप की भाग दौड़ में 
''अंकल, वह परी वाला स्टीकर देना 
वह कवर का पूरा बंडल देना,
ये वाला नही वो अलादीन वाला कंपास देना''
दूसरे दिन दोस्तों को दिखाना 
'मेरा वाला पेन तेरे पेन से ज्यादा अच्छा है
तेरा स्टीकर इतना अच्छा नही है मेरा वाला देख'
बहुत याद आता  है 
जून का वो महीना
जब भी बारिश की पहली बूँद पड़ती है,
कभी न मिटने वाली ये यादें 
चक्षु पटल पर अंकित हो जाती है 
डबडबाई आँखों से वर्षा बूँद की तरह 
धुंधलाकार मिटा जाती है 

देखते देखते ही न जाने कब 
इतने जून बीत गए कि 
अब वो यादें बन गई 
कैसे  समझाऊ खुद को 
ना आयेंगे वो दिन 
ना आयेंगे वो पल

दुनिया की भेड़चाल में 
खो गयी है सारी मासूमियत 
यंत्रचालित सी जिंदगी ने 
छीन ली है सारी इंसानियत 
क्या पता था तब हमे 
ये ही जीवन के सबसे हंसी दिन है 
आज जब पता चला तो कभी ना लौट पाने का गम है 

हे ईश्वर अगर लौटाते हो 
बीता हुआ कल 
तो मुझे लौटा दो, सिर्फ एक पल 
जून का वो महीना 
            जून का वो महीना ...........